ओरा (Aura / आभा मण्डल क्या होता है? ) -
ओरा मानव शरीर के अन्दर और बाहर की तरफ आभा मण्डल को कहते है, जिसे आन्तरिक आभा मण्डल एवं बाहृय आभा मण्डल कहते है । आन्तरिक आभा मण्डल चार से पांच इंच का होता है एवं बाहृय आभा मण्डल मनुष्य की निजी आध्यात्मिकता एवं सकारात्मकता पर निर्भर करता है, यह आभा मण्डल शरीर की बनावट के समान होता है एवं हमारे शरीर का सुरक्षा कवच होता है। इसे Human Energy Field भी कहते है ओरा का सर्वप्रथम वैधानिक अध्ययन लन्दन के सेन्ट सेमस अस्पताल के चिकित्सा विशेषज्ञ डाॅक्टर वाल्टर ने किया । विशेष प्रकार के रंगीन कांच के माध्यम से जब उन्होने शरीर एवं उसके विभिन्न अंग-अवयवों का पर्यवेक्षण किया तो उनको चारो ओर एक चमत्कारी आभा दिखाई पड़ी , जिसे उन्होने ओरा की संज्ञा दी, और शरीर से निकलने वाली ऊर्जा को एक प्रकार की बिजली कहा । इसके बाद केम्ब्रिज युनिवर्सिटी के बैग्नाॅल ने इस कार्य को सिद् कर दिया । उन्होने पहली बार भौतिकी भाषा में इसकी व्याख्या की। बैग्नाॅल ने ओरा को दो स्पष्ट भागो में विभक्त किया । बाहरी धुन्ध वाला भाग एवं भीतर का तेजपूर्ण चमकदार भाग ।
इन्हे देखने के लिये बैंग्नाॅल ने एक विशेष प्रकार का चश्मा तैयार किया, जिसके लैन्स खोखले थे । इनमें विशेष प्रकार का रंग डायसाईनिन भरा था। इस रंग की विशेषता यह है कि इसके माध्यम से देखने से आंख की दृश्य सीमा बढ़ जाती है और वह सब कुछ देख सकती है, जो कि सामान्य स्थिति में उसकी क्षमता से परे है । इसके पश्चात् क्रिलियन ने एक विशेष यंत्र का अविष्कार किया, जिसके द्वारा ओरा एवं चक्रों को फोटोग्राफी द्वारा देखा जा सकता है । जिस अंग में बीमारी होती है, उस जगह का ओरा असंतुलित हो जाता है । स्केनिंग के द्वारा असंतुलित ओरा का चित्र लेकर चक्रो की हीलिंग करके उपचार किया जाता है। वैसे तो ओरा हर व्यक्ति का होता है, परन्तु महापुरूषो और पवित्र आत्माओं के शरीर में मस्तक के चारो और पाया जाने वाला ओरा अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत व विशेष आभायुक्त होता है। जब मस्तिष्क का सहस्त्रार चक्र जागृत हो जाता है तो सहस्त्र दल कमल से सहस्त्रों-सहस्त्र प्रकाश रश्मियाॅ प्रस्फुटित होती है, और सिर के चारो और वृताकार रूप में प्रभा मण्डल का निर्माण करती है। इसका रंग सुनहरा चमकीला होता है, यह वर्ण स्थायी होता है और इसे पवित्र मनुष्यों द्वारा चर्म-चक्षुओं से भी देखा जा सकता है। ग्रन्थो में प्रभा मण्डल की उत्पत्ति केवल आध्यात्मिक एवं महान पुरूषों में ही होती बताई गई है।
रामकृष्ण परमहंस और योगी अरविन्द के बारे में कहा जाता है कि जब वे गहन ध्यान की स्थिति में होते थे तो उनके शरीर के चारों ओर बादलो जैसा एक चमकीला धुंध दिखाई पड़ता था। यह प्रभामण्डल तब तक बना रहता था जब तक वे ध्यानावस्था में रहते थे । ध्यान भंग होते ही यह तिरोहित हो जाता था। यह एक सुनिश्चित अकाट्य तथ्य है कि व्यक्ति अपने अन्दर की शक्तियों को जगाकर अपना आभामण्डल प्रभाव क्षेत्र को बड़ा कर सकता है।